मिल जाए जो आसमां का इक छोटा सा टुकड़ा...
बन जाऊं पंछी मैं फिर उड़ती फिरूँ उस छोटे से आसमां में...!!
ना हो बंदिशे कोई, ना हो कोई रीतियाँ...
मिल जाए फिर मुस्कान मुझे, खिल जाए जिंदगानी..!!
चुन-चुन कर अपने लिए, दाना उड़ कर लाउंगी.
भीग कर बरखा मे फिर पंख अपने फड़फड़ाउंगी...!!
देखूंगी उस छोटे से अपने आसमां से ये दुनिया सतरंगी....
सूरज से मिलकर मुस्कुराउंगी, चँदा से हाथ मिलाकर, फुर से उड़ जाउंगी....!!
खेलूंगी संग सितारों के लुखा-छिपी..
आकाश गंगा में तैरती हुई खिल-खिलाऊँगी...
रहेगी ना फिर कोई ख़्वाहिश, बस ऐसे ही जीते जाउंगी....!!
मिल जाए जो आसमान का इक छोटा सा टुकड़ा....
पंछी सी बन मैं स्वतंत्र जीते जाउंगी...!!
-Shez
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