Wednesday, May 4, 2016

क्यूँ आज बेटी आई हैं......??

घर में पसरा सन्नाटा हैं साथ उदासी भी
यहां छाई हैं....
शायद आज बेटी आई हैं....!! !!

जन्म पर उसके ख़ुशी नही, इक निराशा सी छाई हैं....
लड़के के एवज में आकर, इक दया सी पाई हैं...
शायद आज बेटी आई हैं....!! !!

भेद मिटा हैं कागजों में, मग़र दिल में अभी वो पराई हैं..
सपने देखने का हक़ नही, ताने ही जीवन के हमराही हैं

रीती-रिवाज़ के नाम पर, इससे सारी ज़िन्दगी गवाई है..
अपनों से भी तो इसने बस, नसीहतें ही पाई हैं...
यहां आज बेटी आई हैं...!! !!

देवी बनी ये वेद-ग्रन्थों में मग़र, इस जहाँ में जगह ना बना पाई हैं...
तो फिर क्यूँ आज बेटी आई हैं.....??

-Shez

No comments:

Post a Comment