बेड़ियों मे जकड़ी रहोगी तुम अब कब तलक..??
बंद किवाड़ मे जड़ी रहोगी कब तलक..??
कि रहोगी उस पिंजरे में बंद तुम अब कब तक...??
देखो उस आंसमान को तुम भी छुकर जरा..
सूरज की रोशनी को खुदी मे तुम भी समाओ जरा...
बादलो को खीचकर लगाओ होठों पर अपने,
और उस सहमे से मन को भी भिगलों तुम भी जरा...!!
तोड़ दो वो बेड़िया सारी, तुम भी अब परिंदों सा उड़ना सीख लो
जो कहे दिल तुम्हारा वही करना सिख लो..
मुस्कुराकर अब खुद के लिए भी तुम जीना सिख लो..!!
अब तो देख लो उस आसमान को छूकर जरा,
परिंदों की तरह अब तुम भी स्वतंत्र जीना सिख लो..!! !!
-Shezlove
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