Wednesday, May 4, 2016

इक ख्वाहिश....

इक ख़ामोशी सी पसरी है....है इक खालीपन का सा अहसास....
होश नहीं है शायद, कुछ खोया-खोया सा है..!!
आँखों में आँसू नहीं , फिर भी एक दर्द ठहरा है ज़हन में कही...
भीड़ हैं बहुत चारों और, हैं फिर भी कही अकेले होने का अहसास...
अब मन में यही तो ख्वाहिश है...
तन्हा रहने की ख्वाहिश...
कि जहां हम हो....नहीं हो कोई और सिवा हमारे...!!
ख्वाहिश है....समंदर से आती वो ठण्डी लहरे हो, 
और पैर हमारे उन्हें छू रहे हो....
जिससे सुलगते इस ज़हन में एक ठण्डी सी मासूम सी लहर दौड़ जाए....
जो दे सके एक सकुं का अहसास हमारे मन को.....!!
ख़्वाहिश है...हो हम उस राह पर जहां चारों और हो वो पीले-पीले सूखे पत्ते ...
चलते रहे जिस राह पर बेसुद हम..
आवाज हो तो सिर्फ उन पत्तो के टूटने पर होने वाली चरपर की आवाज हो..!!
साथ उन पैड़ पर बैठे उन पंछियों की चहकने की आवाज हो....सिवा उसके कुछ ना हो...!!
देख जिन को चहकते हुए लबों पर हमारे भी कुछ देर तक मुस्कान ठहरे....!!
बस अब यही ख़्वाहिश है...सिवा इसके कुछ नही..||

-Shez 

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