Wednesday, May 4, 2016

मेरी कलम...


कभी समझ नही आता
जब कुछ
बेचैनी होती है जैसे
ना जाने फिर क्यूँ
मन झुंझला सा जाता हैं,
करना चाहती हूँ
सवाल बहुत
मग़र जवाब नही मिलते..!!
और फिर
थाम लेती हूँ
कलम अपनी और 
कोरे कागज़ पर उतार देती हूँ
हर सवाल अपने, हर जवाब अपने
उलझने अपनी जो दिल
उस वक़्त सुलझा ना पाता हो,
या कुछ ऐसा जो 
उस एक पल में रूह को सकूँ दे
कुछ यूँ कि
परतंत्रता में भी अहसास कराएं
आज़ादी का....!!
अहसास कराएं हर लफ्ज़ मेरा
कि मैं हूँ
नज़दीक समंदर के
हर लहर महसूस कर पा रही हूँ जैसे
और खुला वो आसमान हैं
मेरे माथे पर...
जहां हर और उड़ रहे हैं
पंछी स्वतंत्र अपनी उड़ान...!!
और फिर 
पा जाती हूँ मंजिल अपनी
चहरे पर फिर से मुस्कान सी खिल जाती है..
वज़ह इसकी फिर से 'मेरी कलम' बन जाती हैं..!! !!
-Shez

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