ना मिली जमीं ना आसमां मिला मुझको..
मिला है तो ये ग़म का समंदर मिला मुझको !!
देती है दिलासे और थपकियाँ कुछ आवाजें..
मग़र खा के तरस उनकी निगाहें देखती एकटक मुझको !!
ना दर्द समझता है कोई, ना ही बना है कोई मरहम..
मेरा दर्द बढ़ाता है हर कोई, अपना दर्द दिखा के मुझको !!
इस वक्त जब नज़दीक हर अपने को होना था मेरे..
नही है इस जहां में कोई मेरा कहता है यही शख़्स मुझको !!
-Shez
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